BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।

अथवा
दीर्घीकृत ध्यान किसे कहते हैं? दीर्घीकृत अवधान पर किन कारकों का प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
लघु प्रश्न
1. दीर्घीकृत ध्यान किसे कहते हैं?
2. दीर्घीकृत ध्यान किन कारको से प्रभावित होता है? स्पष्ट करें।

उत्तर-

दीर्घीकृत अवधान या ध्यान या जिसे निगरानी भी कहा जाता है, ये एक ऐसी प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अधिक समय तक अपना ध्यान किसी उद्दीपक पर केन्द्रित किए रहता है तथा उस उद्दीपक के प्रति अधिक सतर्कता बनाए रखता है। दीर्घीकृत अवधान के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की अभिरुचि तब उत्पन्न हुई जब उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रडार संचालको में अवधान से सम्बन्धित समस्याएँ उत्पन्न होते पायी। इन संचालकों को गौर से ध्यान देते हुए दुश्मन के आते हुए हवाईजहाज से रडार में उत्पन्न संकेतों की पहचान करनी होती थी। कुछ समय तक इस तरह के कार्य करने के बाद रडार संचालकों के निष्पादन में गिरावट आने लगी और वे दुश्मन के आते हुए हवाईजहाज से रडार में उत्पन्न संकेतों की पहचान करने में वे असफल होने लगे। इस तरह के प्रेक्षण से प्रेरित होकर दीर्घीकृत अवधान के प्रयोगात्मक अध्ययन का प्रयास प्रारम्भ किया गया और इस संदर्भ में पहला प्रयोगशाला प्रयोग मैकवर्थ (1950), द्वारा किया गया। इस प्रयोग में इन्होंने रडार के अनुरूप प्रदर्शन, जिसे घड़ी परीक्षण कहा गया, का उपयोग किया। प्रयोगों के परिणाम से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ, कि संकेत पहचान के कार्य निष्पादन में उत्पन्न कमी का कारण थकान नहीं हो सकता, क्योंकि इन प्रयोगों में कार्यभार बहुत ही हल्का था। ब्राडवेन्ट (1971), के अनुसार इन निगरानी कार्यों का सैद्धान्तिक महत्व यह है कि यह मनोवैज्ञानिकों को उन सभी कारकों का अध्ययन करने की प्रेरणा देता है जो दीर्घकालीन अवधान को प्रभावित करते हैं।

दीर्घकालीन अवधान के प्रयोगों से अवधान के बारे में कुछ रुचिकर तथ्य सामने आए हैं। दीर्घीकृत अवधान या निगरानी कार्य के स्वरूप से यह स्पष्ट हुआ है कि किसी बाह्य उद्दीपक पर ध्यान देना एक तीव्र क्रिया है, जिसमें काफी मानसिक प्रयास व्यक्ति को करना पड़ता है। इस मानसिक प्रयास का पूर्ण उपयोग तब तक नहीं होता है जब तक कि व्यक्ति एक खास ढंग से उत्तेजित नहीं हो जाता है। उद्दीपक पर अवधान देने के लिए आवश्यकता है कि व्यक्ति में दैहिक उत्तेजन का स्तर जैसे - विशेष शारीरिक मुद्रा, विशेष मासपेशियों में तनाव तथा सतत् सक्रिय एकाग्रता आदि विशेष स्तर बना हुआ हो, परन्तु निगरानी कार्य के दौरान जो घटना घटित होती है, उससे यह स्पष्ट है कि उत्तेजन के बढ़ते हुए स्तर से उत्तम निष्पादन नहीं हो पाता है। जैसे-जैसे उत्तेजना में वृद्धि होती है, अवधान किसी केन्द्रीय लक्ष्य पर केन्द्रित हो जाता है, परन्तु अन्य किसी दूसरी तरह की सूचनाओं की उपेक्षा हो जाती है, तो स्वभावतः निष्पादन में ह्रास हो जाता है। 1908 में यर्क्स तथा डोडसन ने उत्तेजन के स्तर तथा निष्पादन को एक विशेष नियम जिसे 'यर्क्स-डोडसन' नियम कहा जाता है, कि दीर्घीकृत अवधान या निगरानी कार्यों में निष्पादन उस समय सबसे उत्तम होता है, जब व्यक्ति में उत्तेजन का स्तर मध्यम होता है। बहुत कम तथा बहुत अधिक के उत्तेजन स्तर होने पर निष्पादन में ह्रास होता है।

दीर्घीकृत अवधान के निर्धारक

दीर्घीकृत अवधान के क्षेत्र में किए गए प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर कई तरह के कारकों का प्रभाव पड़ता है जो निम्नलिखित हैं

(1) संवेदी कारक - व्यक्ति का दीर्घीकृत अवधान इस बात से प्रभावित होता है कि उद्दीपक का स्वरूप क्या है? मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जब दीर्घीकृत अवधान कार्य में श्रवण संकेत की पहचान करनी होती है तो ऐसे कार्य का निष्पादन उस परिस्थिति से होता है, जब दीर्घीकृत अवधान कार्य में दृष्टि संकेत की पहचान करनी पड़ती है।

(2) संकेत या उद्दीपक उत्कृष्टता - मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर उद्दीपक या संकेत की उत्कृष्टता का भी प्रभाव पड़ता है। संकेत की उत्कृष्टता के दो पहलुओं का अध्ययन किया गया है - संकेत की तीव्रता या विस्तार तथा संकेत की अवधि।

किसी संकेत या उद्दीपक पर अधिक देर तक ध्यान देने पर उसमें व्यक्ति विवेचित संकेत या उचित संकेत का ठीक-ठाक पहचान कर पायेगा कि नहीं, यह संकेत के विस्तार या तीव्रता तथा उसकी अवधि पर निर्भर करता है। दीर्घीकृत अवधान कार्य, विवेचित उद्दीपक की अवधि द्वारा भी प्रभावित होता है।

(3) पृष्ठभूमि घटना दर - कई मनोवैज्ञानिकों के अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर उद्दीपक की पृष्ठभूमि घटना दर का भी प्रभाव पडता है। पृष्ठभूमि घटना से तात्पर्य वैसे घटना चक्र से होता है, जिसमे विवेचित उद्दीपक या संकेत जिसकी पहचान व्यक्ति को करनी होती है, एक तरह से छिपा होता है। जेटीसन तथा विकेट (1964) ने प्रयोग करके उसके परिणाम में देखा कि विवेचित उद्दीपक या संकेत की पहचान की प्रतिशत मंद घटना गति में तीव्र घटना गति की काफी अधिक थी। इस प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि दीर्घीकृत अवधान का गुण पृष्ठभूमि या तुलना तदस्थ घटनाओं की उपस्थिति की दर से प्रतिलोभित रूप से सम्बन्धित होता है।

(4) सामयिक एवं स्थानिक अनिश्चितता - उपरोक्त तीन मनोदैहिक कारकों को जिनसे दीर्घीकृत अवधान प्रभावित होता है, उन्हें प्रथम क्रम का कारक कहा जाता है, क्योंकि इनमें उद्दीपक के कुछ तात्कालिक भौतिक गुणों में जोड़-तोड़ किया जाता है। इस प्रथम-क्रम कारक के अलावा कुछ द्वितीय क्रम के कारक भी हैं. जिनसे दीर्घीकृत अवधान प्रभावित होता है। इसमें एक प्रधान कारक है - प्रत्यक्षणकर्त्ता या प्रयोज्य के मन में इस बात की अनिश्चितता कि संकेत या उद्दीपक जिसकी पहचान की जानी है, कब और कहाँ-कहाँ उपस्थित होगा। पहले कारक को सामयिक अनिश्चितता तथा दूसरे तरह के कारक को स्थानिक अनिश्चितता कहा जाता है।

(5) परिणाम ज्ञान - परिणाम ज्ञान का भी प्रभाव दीर्घीकृत अवधान पर पड़ता है। मैकवर्थ (1940) द्वारा इस क्षेत्र में किए गए आरम्भिक प्रयोगों में यह देखा गया कि परिणाम ज्ञान देने से अर्थात् निगरानी या दीर्घीकृत अवधान कार्य के निष्पादन के बारे में यह देखा गया कि परिणाम ज्ञान देने से संकेतों की सही पहचान की आवृत्ति में वृद्धि हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों एवं उनके सहयोगियों ने परिणाम के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि की है, कि परिणाम ज्ञान देने से निगरानी कार्य मे उद्दीपक या संकेत के सही-सही पहचान की आवृत्ति तथा गति दोनों में वृद्धि हो जाती है। परिणाम ज्ञान देने से संकेत के सही-सही पहचान की आवृत्ति तथा गति में वृद्धि का कारण बतलाते हुए मनोवैज्ञानिको ने यह कहा है कि इससे प्रयोज्यों को यह अभिप्रेरणा मिलती है और यह अगले प्रयासों में अपने आपको आवश्यकतानुसार अधिक सतर्क कर लेता है, जिससे संकेत की सही पहचान में कुछ विशेष सहयता मिल जाती है।

स्पष्ट हुआ कि दीर्घीकृत अवधान के कई निर्धारक हैं। ये सभी निर्धारकों का स्वरूप मनोदैहिक है। इसलिए इन्हें मनोदैहिक निर्धारक भी कहा जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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